
क्या तुम एक कविता हो..?
जिसे लिखा था एक रोज़ मैंने
जब उतर आया था चांद
तालाब के पानी में ।
जब चांद में देखी थी
छवि तुम्हारी
और लिख डाले थे मैंने
उसकी चमक के पीछे छुपे
उसके घाव भी ।
चांद ये देख उतर आया था
विद्रोह पर
जैसे तुम हो जाती हो
विद्रोही, जब देख नहीं पाती
अन्याय...
याद है मुझे
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