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द्रौपदी का सत्य

ये चीरहरण मेरा नहीं, दुर्योधन !

है मानवता हुयी शर्मसार


किसने तुमको ये अधिकार दिया ?

मर्यादा को मेरी एक वस्त्र से बांध दिया ?


अन्याय को वे धर्म कहते रहे 

भीष्म, द्रोण, विदुर सब सर झुकाये सुनते रहे 


वस्त्र मेरा हरने चले

नग्न ये समाज खड़ा


स्त्री के सम्मान को उसके शरीर से जोड़ा 

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