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कारवां-ए-ग़ज़ल

ज़िंदगी जब ख़ुद से बात करती है,

तब कोई शेर बनता है।

जब निकल जाते है चाँद से दूर,

तब कोई शेर बनता है।

जब वो खिलखिला के हँसती है,

तब कोई शेर बनता है।

बिना उनके जब दिन गुजरता न हो,

तब कोई शेर बनता है।

महफ़िल में

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