
पर्व सभी के अलग हो गए कैसे ले नूतन आंनद,
घृणा द्वेष से भर गया मानव रंगों में बंट गये है पर्व।
साझी धरा पर अब इंसानियत फूट फूट कर रोती है,
पहले सा
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