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हम लड़ेगें साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े


हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर

हल अब भी चलता हैं चीख़ती धरती पर

यह काम हमारा नहीं बनता है, सवाल नाचता है

सवाल के कन्धों पर चढ़कर

हम लड़ेंगे साथी


क़त्ल हुए जज़्बों की क़सम खाकर

बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर

हाथों पर पड़े गाँठों की क़सम खाकर

हम लड़ेंगे साथी


हम लड़ेंगे तब तक

जब तक वीरू बकरिहा

बकरियों का पेशाब पीता है

खिले हुए सरसों के फूल को

जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूँघते

कि सूजी आँखों वाली

गाँव की अध्यापिका का पति जब तक

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