तेरी आवाज़ की चौखट हूँ मैं,
तेरे दीद का तलबगार हूँ मैं।
जब तलक तू सामने न होगा,
सब तरफ धुंआ धुंआ होगा।
जब कभी महफ़िल जिक्र होगा,
दिल के अरमां फिर जवां होग
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तेरी आवाज़ की चौखट हूँ मैं,
तेरे दीद का तलबगार हूँ मैं।
जब तलक तू सामने न होगा,
सब तरफ धुंआ धुंआ होगा।
जब कभी महफ़िल जिक्र होगा,
दिल के अरमां फिर जवां होग