सुकून वो खोया कहां,
वो शाम वो सवेरा गुम है कहां,
खुद से बेगानी,
मैं और मेरी अधूरी कहानी,
लिखने बैठी जो गीत वो अधूरा,
लगता है हर शब्द बिखरा बिखरा,
ढूंढती हूं राहत का कोना,
चाहती हूं कोरी उस चुनरी को रंगना,
रीत ये है कैसी कैसा ये रिवाज़ है,
धुंधली हुई मेरी एक एक रात है,
खुद से मैं रूठूं या खुद को मना लूं,
उजड़े अक्स को मैं कैसे अब सवारूं,
कैद से छूटा एक परिंदा हो गई हूं,
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