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उड़ रहे अनेकों खग नभ मे (गौरव मिश्रा)

उड़ रहे अनेको खग नभ मे,

कुछ तीव्र गति कुछ मंद चाल मे,

कुछ धैर्य रूप कुछ हलचल मे,

उड़ रहे अनेको खग नभ मे।।

एक पंथी है जो भटका था कामयाबी की राहो से,

मिल गया मार्गदर्शन उसको भी उन्ही बेजान किताबों स

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