
तप गया हूँ शोलों में
अंगार थोड़ी दे दे
राख की बुझी पर आज तालाब तू लेले
मैं सूर्य के प्रकाश में तत्पर सुलगता हूँ
आज फिर कांटो के मार्ग पर कदम रखता हूँ
तिमिर के आकाश मैं प्यास है दिनकर
धधक रही ज्वाला को आज खोजता
कुंठित च्नद्र की रागिनी म
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