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महाभारत हार गयी परन्तु दुर्योधन जीत गया ।
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"दुर्योधन"- यह नाम किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। मनुष्य मरने से पहले अपनी छाप अपने कर्मों द्वारा छोड़ जाता है उसी प्रकार दुर्योधन भले ही मर गया हो परन्तु उसके कर्मों की छाप आज भी जीवित है। जिसकी गाथा इतिहास चीख-चीख कर सुनाता है। "महाभारत" को महाकाव्य के रूप में लिखा गया था । इसे भारत का ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ माना जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य ग्रंथ है। इसमें लगभग एक लाख श्लोक हैं। आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत युद्ध 3137 ई.पू. में हुआ। कहते हैं, कि यदि कौरव पांडवों को पाँच गाँव दे देते तो युद्ध नहीं होता। दूसरा कारण यह कि यदि कौरव और पांडव जुआ नहीं खेलते तो युद्ध नहीं होता। चलो यदि खेल भी लिया था तो द्रौपदी को दाव पर नहीं लगाते तो भी युद्ध टल जाता। तीसरा कारण यह कि यदि द्रौपदी चीरहरण नहीं होता और ना ही युद्ध होता । क्या सिर्फ दुर्योधन की ही गलती थी? क्या उस सभा में उपस्थित सभी लोग गलत नहीं थे ? धृतराष्ट्र ही अंधा नहीं था , वहाँ उपस्थित सभी लोग भी अंधे थे यहाँ तक पांडव भी। पितामह भीष्म की न जाने कैसी प्रतिज्ञा थी जो वह भी चुप रह गए। शायद वह भूल गए थे कि उनकी प्रतिज्ञा राज सिंहासन की रक्षा करने की थी। परन्तु उस दिन&nbs