
मैंने वह क्षण देखा
जहाँ न मैं था, न तू
न ईश्वर, न ब्रह्म,
बस एक मौन था,
न सुनना स्वयं की भी आवाज़
वहाँ कोई ध्यान नहीं था
न कोई लक्ष्य
एक शून्य, जो खाली नहीं था
एक पूर्णता, जो
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मैंने वह क्षण देखा
जहाँ न मैं था, न तू
न ईश्वर, न ब्रह्म,
बस एक मौन था,
न सुनना स्वयं की भी आवाज़
वहाँ कोई ध्यान नहीं था
न कोई लक्ष्य
एक शून्य, जो खाली नहीं था
एक पूर्णता, जो