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बचपन के कुछ और रंग



शहर से गाँव जाने तक का सफ़र,
रेल का डिब्बा भी हो जाता था घर।
वो मिट्टी की सुराही,ताड़ का पंखा,
वो खुशी से चढ़ना चाचा का कंधा।

होती है सुंदर बचपन की दुनिया,
नानी के घर बितती हर छुट्टियाँ।
धूल में लिपटे होते ख्वाब हमारे,
बनाते थे मिट्टी के महल सितारे।

कागज़ की नाव चलती पानी की राह,
हर छोटी चीज़ की होती बड़ी चाह।
खिलौनों से ज़्य

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