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वही दरिया बनो यदि तुम, तो लहरों में तुम्हें भर लूँ

वही दरिया बनो यदि तुम, तो लहरों में तुम्हें भर लूँ 

सुना दूँ गीत फिर कोई, तुम्हारी धार में बह लूँ 

मुझे मालूम है तुम तो पहाड़ों से निकलती हो

जो आता है शहर मेरा तो मेरी राह तकती हो

घाट बनकर बनारस के तुम्हें बांहों में यूँ भर लूँ 

साँझ की आरती बनकर इबादत मैं तेरी कर लूँ 


किसी इतिहास के अवशेष यादों में झलकते हैं

कि जैसे आँख से आँसू तेरी खातिर टपकते हैं

मैं वे आँसू किताबों में पुष्प के संग ही रख लूँ

तुम्हारे दिल के

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