तेरी चाल जैसे किसी साज पे मोरनीका थिरकना
तेरी आवाज़ जैसे किसी धुनपे कोयलका कुहूकना
तेरी निगाहें जैसे बेबाक़ नोकीली तीर का चलना
तू सामने आये तो मुश्किल है तुझसे प्यार करनेसे बचना
तेरी चालमे ऐसा नशा है मैं होशमन्द कैसे रहता
तेरे इक तीर-ए-नज़रसे मैं घायल कैसे न होता
तेरी जादुई अदा की गिरफ़्त से मैं कैसे बच पाता
तू सामने आये तो होश-ओ-आवास कैसे सँभालता
क़ाबू में न था मैं, तेरे इश्क़मे यूँ उलझा हुआ था
बात इतनी बढ़ गयी थी ख़ुद को ही खो बैठा था
दश्त-ए-इश्क बीचों-बीच मेरा क़ाफ़िला भी लुट गया