ख़त में क्या लिखूँ तुझे, या यूँ कोरा ही भेज दूँ,
लहूसे लिखे जज़्बात हैं ये, सियाहीभी क्यों ज़ाया करूँ
सामने जब तू आये तो ज़ुबान भी ना खुल सके,
काग़ज़ भी ना कुछ काम आयें, कहूँ तो कैसे कहूँ
कासीद भी ना मिले, तेरे घर का पता भी ना मिले,
ख़त भी ना भेज सकूँ, पैग़ाम-ओ-सलाम कैसे भेजूँ
कम्बख़्त उसी वक़्त हवा का रूख भी
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