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गुलदस्ता

#Inkit

मैं  चुनने में लगा रहा इक  गुलदस्ता  गुलाबों  का
पर   इत्र उसको भाता था  गुलज़ार की किताबों का

जिस तरफ़ नज़र डालूं  हर चीज़ मरम्मत मांगे है
कुछ यूं खस्ता हाल  है  मेरा कारखाना ख्वाबों का

जाने क्यों  पलड़ा भारी है, इस दिल के तराज़ू में
तेरे लबों से ज़्यादा , आंखों में मिले जवाबों का 

देख के इन को दिल मेरा तहजीब में आ जाता है
आँखें  हैं  तेरी या फिर कोई शहर नवाबों का

जिसने भी मांगा उस पर जी भर के  लुटाया खुद को 
  क्या गज़ब का ये गुनाह था सूखे हुए तालाबों का
 

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