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ये सब जो व्याप्त है पर्याप्त है ,
कभी थमा नहीं था बेचैनी,
जो बिमारी है सब भ्रांत है,
कर्ता कौन ? कर्म किसके हाथ है?
शरीरों से गिनता अपना प्राण है,
कितना सुलभ मेहनतकश राज है,
अनुभव से बढ
कभी थमा नहीं था बेचैनी,
जो बिमारी है सब भ्रांत है,
कर्ता कौन ? कर्म किसके हाथ है?
शरीरों से गिनता अपना प्राण है,
कितना सुलभ मेहनतकश राज है,
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