खुद से बातें's image
मैं अपने दानव से भलीभांति परिचित हूं ,
वो वहां जो महामानव है उससे अकिंचत हूं ,
अहम खेल जाता कई बार वहम ,
बहला फुसला छाया कर लेता कायम ।
क्यों मैं झूठ को झूठ ना कहता हूं ,
क्यों मैं बार-बार मान ये लेता हूं ,
क्यों ये अंगारे विचलित कर जाते हैं ,
क्यों अपना स्थान भुलाई देता हूं ।
खेले या न खेले , खेल हमेशा जारी है ,
अहम भी ब
Tag: कविता और1 अन्य
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