जागृति's image
अभी तो तोड़े टूटा हूं , कविता बनकर फूटा हूं ,
कई दिनों से सोया सोया , आज जगाया ऊठा हूं ,
मन पे छाले जाले-जाले , असत्य सत्य का नाम संभाले ,
क्या पता क्या-क्या करके बैठा हूं।

कई वर्षों से नेत्रहीन था ,
मन पर गहरा खेद भी था ,
Tag: अनुभव और1 अन्य
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