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Poetry
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आज़ादी
गणेश मिश्रा
February 27, 2022
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आज़ादी कि ज्वाला आज हल्की है ,
आज़ादी कि दिशा आज अलग ही है ,
आज़ादी आज भीतरी गुलामी से सोया है ,
गलती हमारी है हमने ही खुद को खोया हैं।
आज का दिन ही स्मृति को तथ्य से जोड़ता है ,
वो आज़ाद और सावरकर ही है जो सत्य की
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कविता
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