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यार परिज़ाद..!

परिज़ाद!

आज जाने क्यों मेरा दिल किया कि तुमसे बात करू। कोई आदाब नहीं करूँगा। कोई नमस्कार नहीं, कोई मशवरा नहीं लेकिन तुम्हारे लिए कुछ सवाल हैं मेरे पास; जो मेरे ज़ेहन को एक जगह पर रुकने नहीं दे रहे हैं।

जुलाई 20, 2021 को तुम्हें पहली बार देखा था तब मुझे तुम बड़े अजीब लगे यार और फिर मैंने देखी तुम्हारी मोहब्बत, तुम्हारी वफादारी, तुम्हारा ज़र्फ़ और जाने कितनी सारी खूबियाँ। मैं बहुत परेशान था। मैं बहुत हैरान हूं। एक सवाल ये कि आख़िर क्यों तुम अपने अन्दर इतने दर्द को दबा कर रखे रहे? दूसरा; कि कोई एक इन्सान इतनी दर्द के बाद भी कैसे ज़िंदा रह सकता है?
 
एक बात बताओ यार परिज़ाद! 
तुम जानते हो कि ये दुनिया सिर्फ और सिर्फ बाहरी खुसूसियात को देखती है। ये अन्दर से खोखली है और ऐसे ही लोगों को पसन्द भी करती है; जो भले ही अन्दर से खोखले हों, बुझदिल हों, खौफ़जदा हों, लचार हों लेकिन इस नामुराद दुनिया की नज़र में अपनी साख बना कर रखते हों। ये दुनिया पैसों और हुस्न वालों को इज्ज़त के लायक समझती है; बस।

यार; तू तो बिल्कुल मेरी तरह है, तुम कैसे इतनी बेदर्द दुनिया की मोहब्बत के बाज़ार में अपनी वफ
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