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पुस्तक समीक्षा : माँ तुम्हारे लिए...

पुस्तक समीक्षा : माँ तुम्हारे लिए...

लेखिका : सुरभि घोष “संजोगीता”

प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन

मूल्य : ₹129


किताब का नाम “माँ तुम्हारे लिए...” जब आप पढ़ते हैं तभी आपको कुछ ये पता चल जाता है कि ये किताब पूरी तरह एक ‘माँ’ के लिए और उसके बारे में है। माँ इस दुनिया का ऐसा रिश्ता है जिसकी बराबरी कोई और रिश्ता कर ही नहीं सकता। इस रिश्ते का दर्ज़ा खुदा ने ऐसा बनाया कि एक ‘माँ’ के पैरों के निचे जन्नत रख दी।

सुरभी ने भी अपनी इस पहली किताब को अपनी माँ–बाबा को समर्पित करते हुए बहुत खूब लिखा है।


ये किताब असल में एक ‘माँ और बेटी’ के बिच पत्रों के द्वारा किए गए संवाद हैं। इस किताब में सुरभी जी के द्वारा ‘30 जनवरी, 2016’ को उनकी ‘माँ’ को पहला पत्र लिखा गया है जब वो कैंसर जैसी बहुत ही घातक बीमारी से लड़ते हुए इस दुनिया और अपने परिवार को छोड़ गयी। जीवन का यही तो यथार्थ है हम किसी से कितना भी प्रेम करें लेकिन प्रकृति के नियम नहीं बदले जा सकते.


ये किताब ज़रूर एक बेटी ने अपने ‘माँ’ के नाम लिखा है लेकिन जब आप इसे पढना शुरू करते हैं तो ऐसा लगता ही जैसे ये आपकी, अपने घर की और अपने माँ के लिए प्रेम लिखा गया है। इसमें प्रेम लिखा गया है। वो संवाद लिखे गए है जो हम सभी अपने माता पिता से करना चाहते हैं लेकिन बहुत सारे संवाद, बहुत सारी बातें अधूरी रह जाती है।

किताब चार सालों की स्मृतियाँ है, जब लेखिका की ‘माँ’ ने इस ख़त्म हो जाने वाली दुनिया को छोड़ा तो उन्हें, उनके खालीपन और उनकी कविताएँ और उनका एक पत्नी और माँ होने के बाद की बातें याद आती गयी और ये अपनी चिठ्ठियों से उनसे बात करती रही। लेखिका को उम्मीद थी कि शायद ये किताब की शक्ल ले लेंगी तो इनके बाबा खुश होंगे, लेकिन प्रकृति ने एक अपनी चाल चली और किताब के आखरी चिठ्ठी में ये लिखा गया है कि किताब आने से पहले ही उनके पिता भी चले गए। लेखिका की इस बात की भी सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने अपने इतने करीबी पत्रों को सामने लाया।


लेखक का परिचय:


सुरभी घोष 'संजोगीता' का जन्म पश्चिम बंगाल के एक गांव में हुआ और परवरिश हिमाचल की सुंदर पहाड़ियों और छत्तीसगढ़ में हुई। अब वो बैंगलोर में निवास करती हैं। लिखना उन्होंने बचपन से ही शुरू कर दिया था। उन्होंने बैंगलोर के कई मंचों पर अपनी कविताएं पढ़ीं हैं। साथ ही कई कविता संग्रहों और पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और कविताएं छपी हैं। उन्होंने अपने लेखन को अपने माता पिता को समर्पित करते हुए अपना लेखक उपनाम 'संजोगीता' चुना है। जो उनके माता पिता के नाम से जुड़कर बना है (संजय कांति घोष और गायत्री घोष)।


आपको ये किताब क्यों पढ़नी चाहिए?


ये किताब स

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