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आँख से अपनी अगर शर्म-ओ-हया पूछेगा

तो गुनहगार गुनाहों की सज़ा पूछेगा


मेरे महबूब का दीदार मय्यसर हो तो

आँख में दिल को बिठा कर के मज़ा पूछेगा


सोच से मुझपर जहन्नुम को न वाजिब करना

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