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"फिर वही राहगुज़र क्यों न हो..."
फिर वही राहगुज़र क्यों न हो,
कुछ पुरानी सी नज़र क्यों न हो।
जिस जगह टूट गए थे हम कल,
वो ही मंज़िल का सफर क्यों न हो।
बात ठहरी है लबों तक अब भी,
दिल में उठती वो सिहर क्यों न हो।
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"फिर वही राहगुज़र क्यों न हो..."
फिर वही राहगुज़र क्यों न हो,
कुछ पुरानी सी नज़र क्यों न हो।
जिस जगह टूट गए थे हम कल,
वो ही मंज़िल का सफर क्यों न हो।
बात ठहरी है लबों तक अब भी,
दिल में उठती वो सिहर क्यों न हो।