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काश! तितली बन जाऊँ !

नन्हे-नन्हे पर हों मेरे,

फूलों पर मैं मंडराऊँ,

रंगों का पर्याय बनूँ मैं,

कीट कभी ना कहलाऊँ,

सोचा करता हूँ अक्सर मैं,

काश! तितली बन जाऊँ !

 

जनम भले ही जैसा भी हो,

गाथा अपनी खुद लिख पाऊँ,

पिंजरे को तोड़ मैं इक दिन,<

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