ग़ज़ल's image
222/222/1222
ये कैसे सपने बुन रहा हूं मैं,
सपनों में अपने चुन रहा हूं मैं।

बूढ़ी आँखे देखें मुझे कब तक,
अब तो आँखों से सुन रहा हूं मैं।

खुदको पटका इतना कभी मैंने,
की जैसे कपड़े धु
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