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ज़िंदगी राख, ख्वाहिशें ख़ाक...

मैंने अपने यार को श्मशान में ख़ाक होते देखा है

बे-फ़िक्र, बे-ख़ौफ़ होकर दर-ए-अफ़्लाक जाते देखा है..

सब बंदिशें तोड़ वो हवा बन फ़लक में फ़ना हो गई

मैंने उसे उस आग में बदन-ए-पाक होते देखा है..

उसके जाने के बाद अंदर से मैं बिखर गया हूँ

उसकी यादों में ख़ुद को बदहवास होते देखा है..

नजदीकियां फ़ासलों में कब तब्दील हुई पता न

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