
ये जो दबी दबी सी आहें हैं
दिन रात दिल को तड़पाएँ हैं
हम लफ़्ज़ समझते हैं उनके
पर वो मुझको समझ न पाएँ हैं..!!
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हम अल्फ़ाज़ पिरोते हैं उनके
वो देते ख़ामोशी भरी सदाएँ हैं
मुन्तज़िर थे हम उनके कब से
पर वो ही फेर लेते निगाहें है..!!
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तुझको सब पता है मेरे ख़ुदा
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