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साक़ी-ए-मयख़ाना…

साक़ी देख ज़माना कैसी तोहमत लगाता है

आँखें तेरी नशीली पर शराबी मुझे बताता है..

मैं तो सिर्फ़ तेरे तसव्वुर का बहाना ढूँढता हूँ

पर वो मुझे शराबी कहकर मेरा पीना छुड़ाता है..

कहने को तो यहाँ हर कोई लगता बहुत प्यासा है

पर मेरे ही पीने पर ना जाने क्यों शोर मचाता है..

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