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सफ़र-ए-ज़िंदगी (Part:5)...

सुबह सफ़र शाम सफ़र ज़िंदगी का मक़ाम सफ़र

बिना रुके चलते रहना देता है ये पयाम सफ़र..

मतलब की दुनिया में कोई नहीं चलेगा साथ तेरे

तुझको ख़ुद चलना होगा बिना करे आराम सफ़र..

कहने को तो हर मोड़ पर मिलेगें हम-सफ़ीर कई

पर उसमें से साथ चलगें जो न करें क़याम सफ़र..

हरक़दम ज़िंदगी लेगी इस सफ़र में इम्तिहान तेरा

पर तू न रूकना चलते रहना सहर-ओ-शाम सफ़र..

यहाँ रुकने, ठहरने वालों की ज़िंदगी होती हराम है

मुसीबत से लड़नेवाले को करता जहाँ सलाम सफ़र..

पर सफ़र-ए-शौक़ में मंज़िल को ना भुला देना यार

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