ख़ामोशी से ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ
ख़्वाबों के फ़लक पर सफ़र कर रहा हूँ..
राह पर हर एक रंज-ए-सफ़र उठाते हुए
जिस्म पर गर्द-ए-सफ़र मफ़र कर रहा हूँ..
जब से इश्क़ की इमारत ग़मों ने ढाई
टुकड़ो-टुकड़ो ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ..
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