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सफ़र-ए-ज़िंदगी (Part:2)...

ख़ामोशी से ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ

ख़्वाबों के फ़लक पर सफ़र कर रहा हूँ..

राह पर हर एक रंज-ए-सफ़र उठाते हुए

जिस्म पर गर्द-ए-सफ़र मफ़र कर रहा हूँ..

जब से इश्क़ की इमारत ग़मों ने ढाई

टुकड़ो-टुकड़ो ज़िंदगी बसर कर रहा हूँ..

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