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नूर-ए-क़लम (Part-2)

लफ़्ज़ दिल से...

जज़्बात तेरे मेरे काग़ज़-ए-बे-रंग को निखार देते हैं

दिल-ए-मुज़्तर को उम्मीद-ए-बहार से सँवार देते हैं..

लफ़्ज़ तेरे मेरी सहव-ए-क़लम को सुधार देते हैं

हालात-ए-ज़िंदगी पर लिखे शब्दों को उभार देते हैं..

अल्फ़ाज़ तेरे मिजाज़-ए-इश्क़ को लज़ीज़ बना देते हैं

फीक़े पड़ चुके अरमानों में जोश-ए-जुनूँ बढ़ा देते हैं..

दर्द तेरे इन आँखों में तिफ़्ल-ए-अश्क ला देते हैं

सियाह रातों में मेरी आँखों से नींदें उड़ा देते हैं..

मुस्कान तेरी बेजान शाख़ों पर फूल खिला देते हैं

Tag: तुष्य और2 अन्य
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