
वो ज़बान पर लफ़्ज़-ए-इंकार लिए फिरते हैं
जिससे टूटे दिल वो हथियार लिए फिरते हैं..
जिस हाथ को पकड़ जीने की चाह थी मेरी
उस हाथ में वो ख़ंजर-ए-खूंखार लिए फिरते हैं..!!
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हसरत-ए-दीदार को जिसके तरसती है मेरी आँखें
वो आजकल निगाहों में कटार लिए फिरते हैं..
हम जिसके क़दमों में फूलों जैसे बिछ जाना चाहते थे
वो उन
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