
फिर एक ख़्वाब-ए-दिलनशीं आलम-ए-ख़याल आया
लबों पर देख उसके मुस्कान ख़ूबसूरत सवाल आया..
इन सियाह ज़ुल्फ़ों के साए में छुप कर जी लें क्या
जवानी के नग़्मे फ़िज़ा में गूंजे वक़्त-ए-विसाल आया..
ये सुनते ही चमक उठा महताब सा चेहरा उसका
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