
जहाँ कण-कण जन-जन में बसे शिव शंकर सन्यासी..
जहाँ स्वंय कालभैरव कोतवाल बनकर हो गए निवासी..
जहाँ गँगा की कल-कल लहरें भी बन जाती अविनाशी..
जहाँ तुलसी, कबीर और रैदास तीनों बन गए प्रभाशी..
जहाँ घाटों की रौनक बढ़ाते हैं मल्लाह और मवाशी..
जहाँ सुबह-ए-बनारस देखने आते स्वंय देव और अकाशी..
जहाँ की गलियों में बम-बम भोले बोल चलते हैं मुतलाशी..
जहाँ मृत्यु भी उत्सव सरीखी हंसकर गले लगाते बनारसवासी..
जहाँ मणिकर्णिका घाट से प्रस्थान चाहता हर भारतवासी..
ऐसी अनादि, अनंत, अडिग, अद्वितीय, Read More! Earn More! Learn More!