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ग़म-ए-जुदाई...

शब-हा-ए-हिज्र-ए-यार में दिल मेरा रोया बहुत है

तेरी ग़म-ए-जुदाई में दिल-ए-क़रार खोया बहुत है..

हसरत-ए-इंतिज़ार-ए-यार में आँखें पथराई हैं मेरी

आलम-ए-तसव्वुर में पलकों को भिगोया बहुत है..

मेरे दिल-ए-मुज़्तर को रंग-ए-बहार से सँवार दे यार

मैंने दर्द-ए-जज़्बात को अल्फ़ाज़ों में पिरोया बहुत है..

देख राह-ए-इश्क़ में अपने ख़ून से गुलाब बो रहा हूँ

शाख़-ए-गुलाब के काँटों को पैरों में चुभोया बहुत है..

एक बार देख तो सही मेरे जिस्म पर कितने ज़ख़्म हैं

मैंने खून भरे अश्क़ों से ज़हन-ए-जज़्बात धोया बहुत है..

दर्द-ए-सफर की तक़लीफ को कम कर दे मेरे ख़ुदा

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