दुनिया बेहद ख़राब हुई यहाँ मुमकिन गुज़र-बसर नहीं
चलते हैं बाग़-ए-बहिश्त अब ये शरीफ़ों का घर नहीं..
यहाँ मकाँ क़ीमती है रहने वाले इंसा की कीमत नहीं
इस उजड़ रहे चमन-ए-आलम की किसी को क़दर नहीं..
इस दुनिया में अज़्म-ए-सफ़र तो हर कोई कर लेता है
पर रंज-ए-सफ़र में ग़म-ए-ज़िंदगी से कोई मफ़र नहीं..
ज़िंदगी की जद्दोजहद में मसरूफ़ हो गए सब यहाँ
मिलते है तमाम सफ़र में पर कोई शरीक-ए-सफ़र नहीं..
ज़िंदगी की कश्मकश में ख़ुद इस तरह बेख़बर हुए सब
फिज़ाओं में महकती आई फ़स्ल-ए-बहाराँ की ख़बर नहीं..
यहाँ मर चुका है आदमी कहीं इंसानियत नज़र नहीं
सफ़र-ए-हयात में मक़ाम-ए-फ़ना है यहां कोई अमर नहीं..!!
#तुष्य
बाग़-ए-बहिश्त: स्वर्ग
Read More! Earn More! Learn More!