
तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ पर कह न सकूँगा
लेकिन तुम्हें कुछ बोले बगैर भी रह न सकूँगा..
जानता हूँ कुछ यूँ ज़िंदगी गुज़र रही तन्हाई में
लेकिन अब तुम्हारी रंज-ए-जुदाई सह न सकूँगा..
इस दिल-ए-मुज़्तर में कुछ यूँ बढ़ रही है बेचैनी
अब बिना देखे तुम्हें मैं ज़िन्दा रह न सकूँगा..
तेरे तसव्वुर में इन आँखों में नींद नहीं
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