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फ़साना-ए-दिल...

होश खो मौज-ए-मोहब्बत में इस क़दर बह गया

जो अभी न कहना था उस से वो भी कह गया..

लब-ए-ख़ामोश से जो अफ़साने बयाँ ना हुए कभी

कँपकँपाते होंठों से दिल के सारे फ़साने कह गया..

हर-लफ़्ज़ हर-अल्फ़ाज़ बुने थे मैंने उसकी यादों में

कुछ नज़्म बन ढल गए कुछ अश्क बन बह गया..

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