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दिल ए नादान...

कहते हैं वो मेरा बचपन अब उम्र-दराज़ हो चला है

दिल-ए-मुज़्तर अब ये तुम्हारा इश्क़-बाज़ हो चला है

पर सुनिए मोहतरमा... आप के लिए ही कह रहा हूँ...

जो कभी था ज़बाँ-दराज़ अब वो बंदा-नवाज़ हो चला है

बज़्म-ए-अख़्तर में ये अदना शायर सरफ़राज़ हो चला है

झुकती थी कभी नज़रें पर आज वो तेज-तर्रार हो चला है

जिनका ना था कभी अज़ीज़ उनको भी नाज़ हो चला है

अल्फ़ाज़ों का मोहताज़ अब लफ़्ज़ों का सय्यार हो चला

आपकी रफ़ाक़त में ये बंदा अब तमीज़-दार हो चला है

और अब इन नज़रों में आपकी इज़्ज़त का लिहाज़ हो चला है..

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