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अरमान-ए-दिल...

जिस्म खुश रूह उदास दिल बद-हवास लिए फिरते हैं

जो ना हो सके मुकम्मल ऐसे जज़्बात लिए फिरते हैं..

यूँ ही भटकते रहते अरमान-ए-दिल तुझसे मिलने को

आजकल लबों पर बनावटी मुस्कुराहट लिए फिरते हैं..!!

ज़िंदगी के सफ़र में हर मोड़ पर मिले हैं ज़ख़्म इतने

ऐसे गहरे ज़ख़्म-ए-हयात रूह पर साथ लिए फिरते हैं..

देखना सताएगी उनको भी वक़्त-ए-तन्हाई की मार बहुत

वो जो आज कल चेहरे पर बड़े शादाब लिए फिरते हैं..!!

लौट के कब आते हैं यूँ अकेला छोड़ कर जाने वाले

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