![सफ़र-ए-ज़िंदगी (Part:4): अंजान राह पर मिला हम_सफ़ीर...'s image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40dr-sandeep/None/WhatsApp_Image_2021-11-19_at_115022_PM_20-11-2021_11-58-17-AM.jpeg)
निकल पड़ा था उस राह पर जिसका कोई मक़ाम ना था
एक मोड़ आया रुक कर पीछे देखा तो कोई तवाम ना था..
टूट गई थी सारी ख़्वाहिशें मंज़िल-ए-मक़सूद को ढूँडने में
उस अंजान रास्ते पर आगे मीलों तक कोई निशान ना था..
थक हार कर बैठ गया ये मुसाफ़िर डगमगाते क़दमों के साथ
उस पथरीले रास्ते पर ज़ख्मों को भरने का कोई इंतिज़ाम ना था..
कहते हैं काँटों भरे रास्तों पर चलकर
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