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अजीब दास्तां है ये…

क्या अजीब दास्ताँ है मेरे अफ़्साने की

शम-ए-तमन्ना पर ख़ाक होते परवाने की

फूल से खिले इस चेहरे के मुरझाने की

ख़्वाहिशों में रंगी हसरतों के बिखराने की..!!


मैंने जब भी कोशिश की उसे भुलाने की

उसके तसव्वुर को दिल से मिटाने की

अपने अरमानों की आवाज़ दबाने की

उसकी यादों से अपना पीछा छुड़ाने की..!!


पर किस्मत की साजिश उससे मिलाने की

अल्फ़ाज़ों के जरिए उसके क़रीब लाने की

नज़्मों से दिल-ए-दास्तान समझाने की

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