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नारी की आज़ादी - एक छलावा

नारी की आज़ादी - एक छलावा

 

आज़ादी का अमृत महोत्सव मना लिया

फिर भी आज़ाद देश की नारी

नहीं हुई आज तक पूर्ण रूप से आज़ाद


ग़ुलामी की शुरुआत...

बचपन से ही शुरू हो जाती

पराई अमानत समझ कर परवरिश होती

ब्याह के बाद...

अपने घर पहुँच कर भी पराई समझी जाती  

अनेकों बंदिशों में बांध दी जाती

 आज़ादी शब्द से बार बार छली जाती!


कलयुग हो या सतयुग

हर युग में नारी

शारीरिक शोषण और मानसिक शोषण से

पल पल प्रताड़ित होती है

कभी जुए में हारी जाती है

कभी वस्तु समझकर बाँट दी जाती है

कभी अग्नि-परीक्षा के हवाले होती है

कभी भरी सभा में…

अपनों के बीच ज़लील होती है

कभी तन्हाई में शोषित होती है…

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