दोनों ओर प्रेम पलता है सखि ,
पतंग तो भी जलता है दीपक भी जलता है
दोनों ओर प्रेम पलता है ।
दोनों के जलने में आली किंतु पतंग भाग्य लिपि काली
आज यही खलता है , दोनों ओर प्रेम पलता है ।
पतंग [ उर्मिला जी ]
दीपक [ सीता जी ]
मैथिलीशरण गुप्त [ साकेत ]
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