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             ✍️DOMESTIC VIOLENCE✍️
          थम सा गया एक कोने में सुनी जब उसकी दर्दनाक आवाज, रोती थी बिलखती थी , पर दर्द अपना किसी से न कहती थी । दर्द उसका जब मैंने सुना तो भूल गया अपना सारा गम याद किया उस खुदा को क्यों बनाया नारी को , चैत्र के नव दिनों में जिस नारी को पूजा जाता है साल के बाकी दिनों में उस नारी को पैरों तले कुचला जाता हैं । सोच रहा मन मेरा ये कैसा यह संसार है, मर्द हुआ पैदा जिससे क्यों उसी के लिए बना वो अभिशाप है । बुझा चेहरा आशाभरी आँखे , बिखरी जुल्फों का घेर है मेरे तन मन मन मे लहरो का उठा एक ढेर हैं। क्यों तू सह रहा है क्यों तू देख रहा है कैसा तू ये मर्द है, न बचा सका उस औरत को, क्या माँ के प्रति तेरा यही फ़र्ज़ हैं । उठ जाग और खड़ा हो , रोक नारी के अत्याचार को , नाश कर उन पापियों का जो रोके नारी के अधिकार को । वो वेग् है संवेग है सृष्टि का अभिषेक

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