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सपनों का स्वेटर

सपने बुनने की कला 

कहीं न कहीं 

मुझे मां से आयी 


मां जो कभी खुली आंखों से 

तो कभी आंखें मूंद कर  

स्वेटर बुनती रहती 

उधेड़ बुन के बीच कितने सवाल 

कितने दर्द परो लेती

मगर बुनाई चलती रहती 


बच्चों की हसीं में घिरी मां 

अख़बार पड़ते 

रसोई में बैठे 

और कभी कभी 

अपनी मां को याद करते वक्त 

मां बुनाई करना ना भूलती 


मौसम का आना और जाना 

मां को बुनने से ना रोक पाता 

भीड़ भाड़ में भी 

चलती बस में

बाबा&

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