
सोचा नहीं था कभी ऐसा
कि इक दिन जाना पड़ेगा
उस सचमुच के जीवंत स्वर्ग में
एक छोटा सा बक्सा और
कुछ जरूरत के सामान लेकर।
जब वहाँ पहुँचे तो...
उदास मन, हतास चेहरा, बैचेनी, अकेलापन,
घर की यादें, गाँव वाले दोस्तों की यादें
ये सब जहन में था।
कुछ समय बाद...
माहौल में ढ़लते गए, नए दोस्त बनते गए
अकेलापन दूर होने लगा पर फिर भी
एक चीज़ हमेशा साथ थी... यादें
घर वालों की, बचपन के यारों की
परिवार की तथा घर के आंगन की।
वो पीटी सर कि विशिल की आवाज
उस समय कानों को ख़राब लगती थी
पर जब अब कहीं भी सुनाई देती है
तो नवोदय फिर से याद आता
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