ख्वाहिशों पर था मेरे मुफलिसी का पहरा ।
वो प्यार मांगती थी मैं बेरोजगार जो ठहरा ।
मैं दर बदर का आदमी वो घर की लाडली
डरता हूँ उसे देख तलबगार जो ठहरा ।
जब भी सोचा मैंने केवल सोचता रहा
हर दफ़ा बस मैं ही गुनह
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ख्वाहिशों पर था मेरे मुफलिसी का पहरा ।
वो प्यार मांगती थी मैं बेरोजगार जो ठहरा ।
मैं दर बदर का आदमी वो घर की लाडली
डरता हूँ उसे देख तलबगार जो ठहरा ।
जब भी सोचा मैंने केवल सोचता रहा
हर दफ़ा बस मैं ही गुनह