
कोई नहीं आता है नज़र,
इक तुम से मिलने के बाद।
बेख़ुद से रहते हैंअक्सर,
इक तुम से मिलने के बाद।
इश्क मेरा लाता है असर,
इक तुम से मिलने के बाद।
अग्यार भी मिलते अपने से,
अफ़साने सच्चे, सपने से।
पर फ़िक्र-ए-जुदाई भी तो है,
अफ़सोस-ए-तन्हाई भी तो है।
अलहदा कैसे होगी गुज़र,
इक तुम से मिलने के बाद।
इश्क मेरा हो जाये अज़ल
इक तुम से मिलने के बाद।
अग़लात मेरे सब देखा कीए,
अदीब जो हैं वो हॅंसते रहे।
पर अर्श-ओ-अबद तक इश्क जिये,
और अज़ीम इश्क हम कहते रहे।
अमलन अऱ्ज हुए सच मेरे,
इक तुम से मिलन
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